आस्पद एवं गोत्र - एक परिचय
पं० अशोक चतुर्वेदी
आस्पद
(पाणिनि अष्टाध्यायी, अध्याय-6,पाठ-1,सूत्र-146)
आस्पद प्रतिष्ठा पाने को कहते हैं। वेद-विज्ञानी गोत्र प्रवर्तक ऋषियों की संतति ने अपने समृद्ध ज्ञान-विज्ञान से अपने लोकजीवन में जो पद-प्रतिष्ठा प्राप्त की वह आस्पद (Surname) नाम से प्रसिद्ध है।
उदाहरण – विदुआ, दुबे, तिवारी, चौबे, पटैरिया, रिछारिया, अरजरिया, गंगेले, बबेले, शुक्ल, दीक्षित आदि…..।
(पाणिनि अष्टाध्यायी, अध्याय -5,पाठ-4,सूत्र-104)
भावार्थ :- ब्राह्मण का जनपद (निवास-स्थान) नाम से भी ख्याति (प्रसिद्धि/आख्या/सूचना/अल्ल) होती है।
उदाहरण :1: – आदिग्राम, जैसे :-
1. रिपनौर के चौबे
2. कारी के करिया मिश्र
3. कंधारी के पटैरिया
4. पिपरी के नायक
उदाहरण :2: – आदिग्राम, जैसे :-
1. जुहौति क्षेत्र के – जुहौतिया
2. सरयूपार क्षेत्र के – सरयूपारीण
3. कान्यकुब्ज (कन्नौज) क्षेत्र के – कान्यकुब्ज……
आदि।
गोत्र भारतीय संस्कृति में सनातन काल से समादृत है। जहाँ कहीं भी परंपरागत विधि से परिचय होता है, वहाँ गोत्र का वर्णन करना अपरिहार्य हो जाता है। गोत्र का अर्थ, परस्पर मनुष्यों का एक समूह है।
(पाणिनि अष्टाध्यायी, अध्याय – 4, पाठ – 1, सूत्र – 162)
भावार्थ – गोत्र शब्द का अर्थ, पुत्र के पुत्र के वंशानुक्रम में उत्पन्न किसी एक ऋषि की संतान से है। जिस वैदिक ऋषि के वंश में जो उत्पन्न हुए हैं, वही ऋषि उनके गोत्र प्रवर्तक हैं। गोत्र से अभिप्राय उस वंश के आदि पुरुष से है।