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जिझौतिया ब्राह्मण (Jijhautiya Brahmin)

         जिझौतिया ब्राह्मण यज्ञ ( जुहोति ) करने व कराने वाले श्रेष्ठ याज्ञिक ब्राह्मण हैं जो जुझौति प्रदेश में निवास करते थे। जिझौतिया ब्राह्मण एक उच्च प्रतिष्ठित, कुलीन और स्वतंत्र ब्राह्मण हैं जो जुहोतिया नाम से स्वयं प्रसिद्ध हुए। जिझौतिया या जुझौतिया  शब्द जुहोतिया का अपभ्रंश है। जिस धरा-धाम पर विपुल परिमाण में यजुर्वेद की ऋचाओं से यज्ञ-हवन किया जाए उस देश को यजुर्हुति या जुहोति कहते हैं। यजुर्वेदिक कर्मकांड के लब्धकीर्ति प्रबुद्ध ब्राह्मणों की बाहुल्यता के कारण इस प्रदेश की जुहोति नाम से प्रसिद्धि हुई। जिझौतिया ब्राह्मण जुहोतय: (यज्ञकर्ता और यज्ञ रक्षक ) के वंशधर हैं जो आदि काल से ही शस्त्रशास्त्रधारी थे क्योंकि हर तरह से यज्ञ रक्षा का भार इन्हीं पर था। ये विशुद्ध वैदिक ब्राह्मण हैं; अतः जितने प्राचीन वेद हैं उतने ही प्राचीन हैं जिझौतिया ( जुहोतिया ) ब्राह्मण। जिझौतिया ब्राह्मणों में यज्ञ के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास आज भी विद्यमान है। अधिकांश जिझौतिया ब्राह्मणों के घरों में आज भी यज्ञ-वेदी है और प्रत्येक शुभ अवसर पर इनके द्वारा पूजा और हवन करने की परंपरा है। जिझौतिया ब्राह्मण आदि ब्राह्मण हैं क्योंकि इनमें और अन्य ब्राह्मणों में प्रवर समता नहीं है। जिझौतिया ब्राह्मण प्राचीन काल से ही शक्ति के उपासक रहे हैं, इसका ज्वलंत प्रमाण जिझौतिया ब्राह्मणों में मेधा-ऋषि (शक्ति-रहस्य के सर्व श्रेष्ठ व सर्वाधिक प्राचीन ज्ञाता ) गोत्र के बिहार-झारखंड के कुलीन मूल्हा मिश्र और वाजपेयी जिझौतिया ब्राह्मण परिवारों का होना है। प्राचीन काल में जिझौतिया ब्राह्मणों की ख्याति ज्ञानवीर और युद्धवीर के रूप में थी, क्योंकि इन्हें शास्त्र और शस्त्र दोनों में निपुणता थी।

आदि स्थान और विस्तार 

वैदिक युग में जुहोतयः (यज्ञकर्त्ता और रक्षक) ब्राह्मणों का निवास स्थान सरस्वती-दृषद्वती तट था जहाँ से ये यज्ञादि के लिए  दूर-दराज के स्थानों में जाते और सम्मान तथा प्रतिष्ठा पाते रहे। अतएव जिझौतिया ब्राह्मणों का आदि निवास स्थान मध्य भारत रहा है जहाँ ये वर्तमान बुन्देलखण्ड ( जो चंदेल-काल में और उसके पूर्व जुझौति नाम से विख्यात था ) और आसपास के क्षेत्र के निवासी थे। इनके क्षेत्र का विस्तार उत्तर में यमुना नदी, दक्षिण में नर्मदा नदी, पूर्व में सोन नदी और पश्चिम में चम्बल नदी तक सुविस्तृत है। वास्तव में जिझौति प्रांत जुहोति/यजुर्होति का ही अपभ्रंश है जो कालान्तर में जिझौति, जुझौति या जेजाभुक्ति के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

आज के बुन्देलखण्ड के अलावा बिहार- झारखण्ड में भी जिझौतिया ब्राह्मणों की पर्याप्त संख्या है; जो सन् 1266 ई० में जुझौति (आज के बुन्देलखण्ड) से  बैद्यनाथ धाम, देवघर   (वर्तमान झारखण्ड) और  गिद्धौर (बिहार) सदल-बल यहाँ आये थे। वर्तमान में प्रान्तीय भिन्नता के कारण जिझौतिया ब्राह्मणों को निम्न प्रकार से जाना जाता है –

1. बुन्देलखण्डी जिझौतिया ब्राह्मण

2. बिहारी-झारखण्डी जिझौतिया ब्राह्मण

3. कड़ा-मानिकपुरी जिझौतिया ब्राह्मण

4. छत्तीसगढ़ी जिझौतिया ब्राह्मण

5. पंजाबी-दिल्ली जिझौतिया ब्राह्मण

6. आसामी जिझौतिया ब्राह्मण

7. गोरखपुरी जिझौतिया ब्राह्मण

8. दाक्षिणात्य जिझौतिया ब्राह्मण

 सामाजिक स्थिति 

जिझौतिया ब्राह्मण कुशाग्र बुद्धि, वीर और जुझारू जाति रही है। बौद्ध धर्म से वैदिक धर्म की रक्षा में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान सनातन संस्कृति का जो स्वरूप है उसमें जिझौतिया ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण योगदान है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में जिझौतिया ब्राह्मण आज भी महाराज की उपाधि से विभूषित होते हैं। बिहार – झारखण्ड में जिझौतिया ब्राह्मणों के वैवाहिक संबंध सदियों से मालवीय ब्राह्मणों से होता आ रहा है। 

जिझौतिया शौर्य 

जिझौतिया ब्राह्मणों में दो वेदों  – यजुर्वेद और सामवेद के मर्मज्ञ सु-विज्ञानी परिवार हैं। जिझौतिया ब्राह्मणों का शौर्य; वेदों की सुविज्ञता से पारंगत है; यही कारण है कि यजुर्वेद का उपवेद :- धनुर्वेद ( युद्धविद्या / धनुषविद्या ) तथा सामवेद का उपवेद :- गान्धर्व वेद ( नादविद्या / शंखनादी विद्या / रणभेरी ) जिझौतिया ब्राह्मणों की कुलकीर्ति में समादृत है। भारतीय संस्कृति में राजाओं के नाम के साथ महाराज  उपाधि / अलंकरण लगाने / धारण करने / लिखने की परम्परा है; जिझौतिया ब्राह्मण समाज के राजाओं के नाम के साथ भी  महाराज  उपाधि के अलंकरण को धारण करने का विधान था। बुन्देलखण्ड में आज भी  जिझौतिया ब्राह्मण समाज में  महाराज  उपाधि / अलंकरण लिखने / धारण करने का विधान प्राचीनकाल से लोक परम्पराओं में है।

वेद और गोत्र

जिझौतिया ब्राह्मण समाज में कुल दो वेदों यथा :- (1) यजुर्वेद और (2) सामवेद  के पढ़ने वाले परिवारों के वंशज हैं। कुल गोत्रों की संख्या 48 है, जिसमें  निम्न पाॅ॑च गोत्रों का वेद सामवेद है – 1. कश्यप  2. काश्यप  3. धनंजय 4. वत्स और 5. शाण्डिल्य। शेष 43 गोत्रों का वेद  यजुर्वेद है। जिझौतिया ब्राह्मणों के 48 गोत्र निम्न प्रकार से हैं-                    

1. अत्रि  2. उपमन्यु  3. एकावशिष्ठ  4. और्व / औरव  5. अंगिरा  6. अंगिरस  7. कण्व  8. कश्यप  9. कात्यायन 10. काश्यप  11. कौंण्डिल्य (कौंण्डिलय)  12. कौंण्डिन्य  13. कौमण्ड ( काउमण्ड/काउमण्डल ) 14. कौशल 15. कौशिक  16.कौशिल  17. कृष्णात्रि 18. गर्ग  19. गौतम  20. घृतकौशिक  21. जातूकर्ण  22. जैमिनि  23. धनञ्जय  24. धौम्य  25. पराशर  26. पाराशर 27. पुण्डरीक  28. भरद्वाज  29. भारद्वाज  30. भार्गव 31. माण्डव्य  32. मिहरस  33. मुद् गल  34. मौनस 35. लौंगाक्षि  36. वत्स  37. वशिष्ठ  38. वाशिल 39.वार्हस्पत्य 40. वीतहव्य  41. शुंग / शौंग  42. शाण्डिल्य  43. श्रृंगी  44. सांकृत  45. सांख्यायन / शांख्यायन 46. सौनक / शौनक 47. हरिकर्ण  48. हिरण्य।

जिझौतिया ब्राह्मणों के उपनाम और गोत्र एक दृष्टि में 

1. कुल उपनाम – 79

2. कुल गोत्र – 48

3. सर्वाधिक गोत्रों वाला उपनाम – दुबे ( कुल गोत्र – 30)

4. गोत्र संख्या में द्वितीय स्थान – तिवारी (कुल गोत्र – 23)

5. गोत्र संख्या में तृतीय स्थान – मिश्र (गोत्र संख्या – 16)

6. सिर्फ 1 गोत्र वाले उपनामों की संख्या – 23

जिझौतिया ब्राह्मण समाज के कुल देवता  गुसाईं बाबू  हैं जो अनादि ब्रह्म स्वरूप हैं। कुलपूजा की जलती हुई जोत की लौ (ज्योति) में  गुसाईं बाबू महाराज का निवास है।

संदर्भ पुस्तक :   

 1.” जुझौतिया ब्राह्मणों के इतिहास की रूपरेखा ”  लेखक –  पं० गोरेलाल तिवारी।

2. ” अथ जुहोतिया जाति जिज्ञासा  ” लेखक –  पं० तुलसीराम चतुर्वेदी  

3 .” चन्देल और उनका राजत्व काल ”  लेखक –  केशवचन्द्र मिश्र ।