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महोबा (बुन्देलखण्ड) से आये थे संयुक्त बिहार के जिझौतिया ब्राह्मणों के पूर्वज

                                                                                                                            ✍️ अजय कुमार मिश्र

                  जिझौतिया ब्राह्मणों के संयुक्त बिहार आने की प्रामाणिक जानकारी श्रद्धेय पं० गोरेलाल तिवारी जी की पुस्तक “जुझौतिया ब्राह्मणों के इतिहास की रूपरेखा” में देखा जा सकता है। 1952 ई० में इस पुस्तक का प्रकाशन ‘ बिहार प्रांतीय जुझौतिया ब्राह्मण सभा ‘ द्वारा कराया गया था। इस पुस्तक में ‘बिहारी जुझौतिया’ के विषय में दी गई जानकारी के अनुसार बिहार प्रान्त में जिझौतिया ब्राह्मण सर्वप्रथम शायद 600 वर्ष पूर्व के लगभग आ बसे ( अन्य साक्ष्यों से जब इसकी पुष्टि की गई तो ये लगभग आज से 756 वर्ष पूर्व 1266 ई० के लगभग की घटना पाई गई। )

       इस प्रांत में जिझौतिया ब्राह्मणों का आदि निवास स्थान गिद्धौर था। वहीं से ये भुल्लो (बिहार के जमुई जिला का एक गाँव) से बन्दनवार (झारखंड के गोड्डा जिला का एक गाँव ) तक 100 गाँवों में फैले हुए हैं। जिझौतिया ब्राह्मण चंदेल शासक के अनुज वीर विक्रमशाह (वीर विक्रम सिंह) के साथ बिहार आये थे। वीर विक्रमशाह के पूर्वज महोबा (वर्तमान में महोबा जिला,उ०प्र०) के शासक थे। सुप्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान द्वारा पराजित होने के कारण वीर विक्रमशाह के पूर्वज महोबा छोड़ अन्यत्र जाने को बाध्य हुए। फलतः उन्होंने बार्डी (वर्तमान रींवा जिला,म०प्र०) में अपना राज्य स्थापित किया। वीर विक्रमशाह चंद्रवंशी थे। वीर विक्रमशाह बहुत से अनुयायियों के साथ तीर्थयात्रा को बैद्यनाथ धाम ( देवघर जिला संथाल परगना) के लिए चल पड़े। निस्संदेह बार्डी के शासकों के इस भाई ने अपने साथ अनेक ब्राह्मण भी ले लिए थे। ये सभी जिझौतिया ब्राह्मण ही थे और इन्होंने ही बिहार में पहले-पहल अपना घर बनाया। चंदेल राजा वीर विक्रमशाह 1266 ई० में गिद्धौर के प्रथम शासक बने। पुस्तक के अनुसार गिद्धौर नरेश से समय- समय पर कई जिझौतियों को जागीरें मिलने की सूचना बताई गई हैं। पुस्तक में गिद्धौरिया बुंदेलखंडी का जिक्र है जिसे दो दलों में बंटा बताया गया है – 🍁मुल्हा और गृहस्थ🍁। पुस्तक के अनुसार यह विभाजन क्षेत्र के बाहर कहीं नहीं है। किसी अन्य प्रांत में भी नहीं है। यह विभेद अनोखा है। बिहार-झारखंड में निवासरत नई पीढ़ी को भी आज मुल्हा और गृहस्थ की जानकारी नहीं है, क्योंकि यह विभेद कब का समाप्त हो चुका है।  गिद्धौर महाराजा के प्रबंधक के किले को महोबागढ़ के नाम से ही जाना जाता है, जो आज भी आबाद है।

       पुस्तक ” चन्देल और उनका राजत्व-काल ” में लेखक  केशव चन्द्र मिश्र ने गिद्धौर राज्य का इतिहास अंतर्गत लिखा है कि तेरहवीं सदी में चन्देल शासकों ने अंग क्षेत्र में जो राज्य स्थापित किया वह गृध्रकूट (आधुनिक गिद्धौर ) था। इसी पुस्तक में  लेखक ने कालंजर से गिद्धौर शीर्षक अंतर्गत लिखा है कि अनुश्रुतियों के अनुसार बैद्यनाथ महादेव ने स्वप्न में वीर विक्रम को गिद्धौर के निगोरिया राज्य को जीतने के लिए प्रेरणा दी। तत्पश्चात वे पूरब की ओर चल पड़े और प्रथमतः बैद्यनाथ धाम पहुँचे। वहाँ उनकी आराधना की और गृद्धकूट विजय के लिए वरदान प्राप्त किया। फिर गृद्धकूट पर्वत निवासिनी बगला देवी जो निगोरिया की इष्ट देवी थी की पूजा कर प्रसन्न किया और बिना विशेष युद्ध के गिद्धौर पर विजय प्राप्त किया तथा वहाँ चन्देल राज्य की पूर्ण प्रतिष्ठा की।

         बैद्यनाथ महादेव द्वारा वीर विक्रम को स्वप्न दर्शन और गिद्धौर के निगोरिया शासक पर विजय का संकेत ——-इस आशय का विवरण गिद्धौर राज्य स्मारक ग्रंथ १९०६ में भी है।

संदर्भ पुस्तक :   

 1.” जुझौतिया ब्राह्मणों के इतिहास की रूपरेखा ” लेखक –  पं० गोरेलाल तिवारी।

2. ” चन्देल और उनका राजत्व-काल ” लेखक –  केशवचन्द्र मिश्र