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वैदिक काल से हैं जिझौतिया ब्राह्मण

✍️अशोक चतुर्वेदी

जुहोति शब्द वैदिक कालीन है। वेदों में  शत्-शत् नहीं वरन् सहस्त्रों बार  जुहोतिशब्द का प्रयोग है।  जुहोति शब्द से वेद वेदांग और समग्र वैदिक साहित्य दर्शन अलंकृत हैं। कात्यायन श्रौतसूत्र ग्रन्थ में प्रथम परिभाषा अध्याय की द्वितीय कण्डिका के सूत्र:- 5 , 6 , 7  में जुहोतय: और यजतय: की परिभाषा वर्णित है :-

यजति जुहोतीनां को विशेष:  (1)  || ( 5 ) ||
 ( यागानां होमानां च विवेचनम् )  
 यजतीनां तिष्ठद्धोमादयो धर्मा।
जुहोतीनां चोपविष्टहोमादय: लक्ष्य-लक्षण सम्बन्धे त्वदृष्टपरिकल्पनम् ।

🔥 यजतय: 🔥 तिष्ठद्धोमा वषट्कारप्रदाना याज्यापुरोऽनुवाक्यावन्तो यजतय:   ( 2 )  || ( 6 ) ||
तिष्ठता होमो येषु ते तिष्ठद्धोमा: वषट्कारेण प्रदानं येषु ते तिष्ठद्धोमा: वषट्कारेण प्रदानं येषु ते वषट्कार प्रदाना: तथा याज्यावन्त:पुरोऽनु वाक्यावन्तश्च ये ते यजतय: उच्यन्ते इति देवयाज्ञिक:‼️

🔥 जुहोतय:🔥 उपविष्ट होमा: स्वाहाकार प्रदाना जुहोतय: ( 3 )  || ( 7 ) ||
उपविष्टेन कर्त्रा होमो येषु ते उपविष्ट होमा: स्वाहाकारेण प्रदानं येषु ते स्वाहाकार प्रदाना: ये उपविष्टहोमा: स्वाहाकार प्रदानाश्च ते जुहोतय उच्यन्ते।‼️
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वैदिक ऊर्जा से समृद्ध  जुहोति शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत वांगमय में आचार्य पाणनि कृत
आष्टाध्यायी में भी जुहोत्यादय: धातु गणों में वर्णित है।  ” हु “ 🔸 दानादनयो: 🔸(दान – आदानयोः =  दान लेना -दान देना ) यहां ”  हु  “ धातु का अर्थ हवन करना है। 
लट्-लकार (वर्तमान काल) एक वचन, प्रथम पुरुष में ”  हु  “  धातु का रूप  जुहोति  है।

🌼वर्ण उच्चारण-सूत्र :-
  ओदोतो कण्ठोष्ठ्म्   
अ +उ =  ”  ओ  “
अर्ध संवृत-स्वर  ”  ओ  “
अर्ध विवृत-स्वर  ”  औ  “
उच्चारण की परम्परा में ” ओ ” का उच्चारण  ”  औ  ” हो गया है। तदक्रम में :-   जुहोति  का उच्चारण  जुहौति  हो गया है। जुहौति शब्द में  ”  इया  ” प्रत्यय लगने से  जुहौतिया  शब्द की व्युत्पत्ति है। जुहौतिया को जुझौतिया  /  जिझौतिया भी कहते हैं।

🌼 कुछ उदाहरण:-
भोजपुर + इया  = भोजपुरिया  
कनवज + इया  = कनवजिया        
कन्नौज  + इया  = कन्नौजिया

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इसी प्रकार –
जुहोति + इया =  जुहोतिया
जुहौति + इया =  जुहौतिया
जुझौति + इया = जुझौतिया
जिझौति + इया = जिझौतिया
जिझौत + इया  = जिझौतिया
जुझौत  + इया  = जुझौतिया

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पाणिनि कृत अष्टाध्यायी में ही  ”  भ्वादि  ”  धातु गण समूह में  ”  यज्ञ  ” शब्द की व्युत्पत्ति का मूल श्रोत यज् 
( देवपूजा संगतिकरण यजन् दानेषु अर्थात देवपूजा,सत्संग, दान करने को यज्ञ कहते हैं ) धातु है। लट्-लकार (वर्तमान काल) एक वचन , प्रथम पुरुष में ” यज् ” धातु का रूप  यजति  है। यज्ञ विधान संबंधी मंत्र यजुर्वेद में है :-
यजुर्वेदेन हुतिर्हवनम् , यत्र स यजुर्हुति देश विशेष: ||
अथ च हूयते यस्मिन्न सौ, जुहौति देश विशेष:  ||
जिस धरा धाम पर विपुल परिमाण में यजुर्वेद की ऋचाओं से यज्ञ-हवन किया जाए, उस देश को  यजुर्हुति: 
 ( जुहौति  / जुझौति /  जिझौति  / जुझौत ) कहते हैं। देश-परक नाम नित्य नहीं होता जबकि गुण-कर्म परक नाम सदा-सर्वदा चलता है। देश भेद से ब्राह्मण वर्गीकरण तथा ब्राह्मणत्व नहीं होता परन्तु देश परक नाम से तद्-देशवासित्व प्रसिद्धि अवश्य होती है।
यजुर्वेदीय कर्मकाण्ड के लब्धकीर्ति प्रबुद्ध ब्राह्मणों की बाहुल्यता के कारण इस प्रदेश की जुहौति नाम से प्रसिद्धि हुई। जुहौति प्रदेश के निवासी जुहौतिया कहलाये। इससे यह सिद्ध होता है कि जितने प्राचीन वेद हैं उतने ही प्रचीन जुहौतिया ( जिझौतिया) ब्राह्मण।